Monday, 19 May 2014

वो सीढ़ियों की आहट


याद है वो दिन! मुझे याद है
उस ठिठुरते नंगे रात को
तुम आई थी दौड़ती हुई
फिसली भी थी सीढ़ियों पे
मामूली सी खराश थी गले में
मैं छतो पे ओस पी रहा था
डॉट लगाई थी बड़ी जोर से
पिलाई थी गरमाहट अलाव की

आज भींग गया हुँ फिर से
और सर्द भी वही है
मोतिया बरस रही है बूंदो में
बालो की मालिश करा चूका हूँ
हा सुबह बर्फ भी पिया था
पर गला सूझा नहीं है अब तक
क्योकि सीढ़ियों पे अब आहट नहीं आती

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