लौटा है सावन जानता हूँ
हर बार की तरह
लौट जाएगा पर क्या हुआ
उनकी याद लाया है यही कम है
पिछले जब आए थे
सुना रह गया था बादल का घर
बुझे थे रंग तेरे खलियानो के
इस बार अच्छी खेती कर जाना
तू भी तो प्यासा था इक छुअन को
लिपट न पाया उनकी बाहो से
केशुओं से टपकने का अधूरा सपना
इस बार दोनो ही टिस निकालेंगे
कोहरे धुलो के बंजर इश्क में
सने हुए है चीरते किरणों से
वो महक दे दो सोंधी सी
जो आ जाती है तेरे आने से
लेते आना छमछम की संगीत
वो डरते है अपने ही आहत से
सखी बहार भी तेरी आ जाएगी
हमारे बागो में भी तेरे आने से
No comments:
Post a Comment