जब इस बार 'घर' जाऊँगा
पीनी है हरियाली जी भर
भर लाऊँगा खुशबू जेबो में
जो केवल यही मिलती है
जब इस बार घर जाऊँगा
डालूँगा बिस्तर जहाँ वजूद मेरा
माँ के वृंदावन आँचल में
जहा रहती है बहार सदा
जब इस बार घर जाऊँगा
मिलूँगा उन दोस्त गलियो से
जो तकती रहती है राह
पेड़ो संग अपनी बूढ़ी आँखो से
जब इस बार घर जाऊँगा
चाहत है फिर सीढ़ी बनाने की
अपने मुहल्लों के छप्परों को
काकी के डाँट वाले प्यार की
जब इस बार घर जाऊँगा
बदला होगा मंज़र जरा सा
लगी होगी नजर यही जैसी
पर बचा होगा 'प्यार' पहले सा
No comments:
Post a Comment